डलहौजी से बारह किलोमीटर की दूरी पर खूबसूरत वादियों के बीच स्थित इस मंदिर में मां काली का रुप पोहलानी स्थापित आस्था के द्वार माता पोहलानी का मंदिर ड...
डलहौजी में माता पोहलानी मंदिर में आस्था का महासैलाब
डलहौजी से बारह किलोमीटर की दूरी पर खूबसूरत वादियों के बीच स्थित इस मंदिर में मां काली का रुप पोहलानी स्थापित
आस्था के द्वार माता पोहलानी का मंदिर डलहौजी में डैनकुंड की खुबसूरत वादियों में बसा हुआ है। माता के इस दरबार में लोगों की भारी आस्था जुड़ी हुई है। डलहौजी से बारह किलोमीटर की दूरी पर खूबसूरत वादियों के बीच स्थित इस मंदिर में मां काली का रुप पोहलानी स्थापित है। वैसे तो यहां हमेशा ही भक्तों का तांता देवी दर्शन के लिए लगा रहता है लेकिन नवरात्रि के मौके पर यहां अथाह भीड़ देखने को मिलती है। भक्त यहां अपनी मुरादें लेकर आते हैं। भक्तों का मानना है कि यहां आने वाले हर भक्त की मन्नत पूरी जरुर होती है। मन्नत पूरी होने पर भक्त देवी को धन्यवाद देने भी आते हैं। मंदिर से काफी लोगों की आस्था जुडी हुई हैं। कहा जाता है कि हजारों वर्ष पहले इस डैनकुंड की पहाड़ी के उस मार्ग से कोई भी नहीं आता जाता था, क्योंकि इस पहाड़ीं पर राक्षसों का वास था। माता काली जी ने पहलवान के रुप में आकर उन राक्षसों का संहार किया तब से इस मंदिर का नाम पोहलवानी पडा। कहते है डेनकुंड नामक जगह पर डायने रहती थी यंहा पर आज भी कुंड देखे जा सकते हैं। लोगों का मानना है कि डैन अमावस्या पर यहां आज भी डायने आती हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार माता यहाँ पर एक बडे से पत्थर से बाहर प्रकट हुई थीं
पौराणिक कथाओं के अनुसार लोगों पर बढ़ रहे अत्याचार को देखकर माता महाकाली से रहा नहीं गया और वह डैन कुंड की इन्ही पहाड़ियों पर एक बडे से पत्थर से बाहर प्रकट हुई। पत्थर के फटने की आवाज दूर दूर तक लोगों को सुनाई दी कन्या रूपी माता के हाथ में त्रिशूल था और यंही पर माता ने राक्षसों से एक पहलवान की तरह लड़ कर उनका वध किया तभी से यहां पर माता को पहलवानी माता के नाम से पुकारा जाने लगा। होवार के एक किसान को माता ने सपने में आकर कहा यहाँ पर माता का मंदिर स्थापित करने का आदेश दिया। माता के आदेशानुसार ही यहां पर माता के मंदिर की स्थापना की गई।
बेहतरीन पर्यटक स्थल है पोहलानी मंदिर, रखेड़ गांव के बाशिंदों की कुल माता
पोहलानी माता काहरी पंचायत के रखेड़ गांव के बाशिंदों की कुल माता है। यह मंदिर हिमाचल प्रदेश के उत्तर पश्चिम भाग में 2200 मीटर की उंचाई पर स्थिरत है। गमियों जहां पर्यटक यहां की ठंडी हवाओं का लुप्त उठाते है तो वहीं सर्दी के मौसम में बर्फ से ढके पहाडों का नजारा देखते ही बनता है। सर्दियों में ये मंदिर और इसके आसपास बर्फ की मोटी चादर बिछ जाती है, जिससे नजारा बहुत ही मनमोहक हो जाता है। दूर दूर तक वर्फ ही वर्फ नजर आती है उस समय यहां पंहुचना बहुत कठिन हो जाता है। यहां से चारों ओर का नजारा दिखाई देता है।