बारिश-बर्फबारी न होने से सूखे की चपेट में सेब के बगीचे

चंबा के चुराह में सूखे पड़े सेब के पेड़ जिले में बारिश न होने से सेब बगीचे सूखे की चपेट में आ गए हैं। बगीचों से नमी गायब है। इससे फासफोरस और पोटाश...

बारिश-बर्फबारी न होने से सूखे की चपेट में सेब के बगीचे

बारिश-बर्फबारी न होने से सूखे की चपेट में सेब के बगीचे

चंबा के चुराह में सूखे पड़े सेब के पेड़

जिले में बारिश न होने से सेब बगीचे सूखे की चपेट में आ गए हैं। बगीचों से नमी गायब है। इससे फासफोरस और पोटाश खाद डालने का काम अधर में लटक गया है। उर्वरकों की कमी से बगीचे बीमारियों की चपेट में आ सकते हैं। इससे फल की गुणवत्ता प्रभावित हो सकती है। बारिश और बर्फबारी न हुई तो चिलिंग ऑवर्स भी पूरे न होने से सेब के उत्पादन में कमी आ सकती है। 15 नवंबर के बाद सेब उत्पादक क्षेत्रों में बारिश और बर्फबारी न होने से बागवानों की चिंताएं बढ़ गई हैं।

सेब की अच्छी फसल के लिए दिसंबर में तापमान 15 डिग्री से कम होना जरुरी 

चुराह के चांजू, तीसा, जसौरगढ़, सनवाल समेत क्षेत्र की दर्जनों पंचायतों में स्थित सेब बगीचों से लोगों की आय होती है। इस बार समय पर बारिश न होने से बागवान परेशान हैं। बागवानी विशेषज्ञों की मानें तो दिसंबर में बगीचों में फासफोरस और पोटाश खाद डाली जाती है। इसके लिए जमीन में नमी होना जरूरी है। खाद से पौधों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और जड़ें मजबूत होती हैं। सेब की अच्छी फसल के लिए दिसंबर में तापमान 15 डिग्री से कम होना चाहिए। इन दिनों तापमान 20 डिग्री के करीब चल रहा है। सर्दी के मौसम में पेड़ों से पत्ते झड़ना जरूरी है। तापमान अधिक होने से पत्ते नहीं झड़ पा रहे। फल उत्पादक मोहन लाल, राजू राम, निर्मल, प्रदीप कुमार, पान चंद और धर्म दास ने कहा कि बारिश-बर्फबारी न होने से सूखे के कारण खाद डालने का काम रुक गया है। अगले एक हफ्ते भी बारिश-बर्फबारी नहीं हुई तो सेब की फसल बुरी तरह प्रभावित होने का डर सता रहा है।

बीमारी की चपेट में आ सकते हैं बगीचे

नमी न होने से बगीचों में फासफोरस और पोटाश खाद डालने का काम प्रभावित हो रहा है। इससे बगीचे बीमारी की चपेट में आ सकते हैं। वूली एफिड का खतरा है। फल की गुणवत्ता भी प्रभावित हो सकती है। तापमान की अधिकता से फसल पर नकारात्मक असर पड़ सकता है।

1200 घंटे चिलिंग ऑवर्स होते हैं जरूरी

सेब के पौधों के लिए 7 डिग्री से कम तापमान में 1000 से 1200 घंटे चिलिंग ऑवर्स की जरूरत रहती है। चिलिंग ऑवर्स पूरे न होने का असर फ्लावरिंग पर पड़ता है। पौधों में एक समान फ्लावरिंग नहीं होती। कमजोर फ्लावरिंग से फूल झड़ जाते हैं। इससे सेब उत्पादन प्रभावित हो सकता है। उपनिदेशक उद्यान विभाग डॉ. प्रमोद शाह ने बताया कि बारिश न होने से सेब के बगीचों में खाद डालने का कार्य अधर में लटका है। बारिश की बागवानों को बहुत आवश्यकता है।