डा. राजेंद्र प्रसाद राजकीय आयुर्विज्ञान चिकित्सा महाविद्यालय टांडा अस्पताल में कैंसर के मरीजों को बेड नहीं मिल रहे हैं। मरीजों को कंपकंपाती इस कड़ाके...
टीएमसी में ठंडे बरामदों में बीत रही कैंसर मरीजों की रातें
डा. राजेंद्र प्रसाद राजकीय आयुर्विज्ञान चिकित्सा महाविद्यालय टांडा अस्पताल में कैंसर के मरीजों को बेड नहीं मिल रहे हैं। मरीजों को कंपकंपाती इस कड़ाके की ठंड में सीमेंट के ठंडे बरामदों में सोने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। कैंसर से पीडि़त एक ऐसी ही चंबा की रहने वाली मरीज मीमो, जिनका अगस्त, 2023 को आपरेशन हुआ था, जिसके चलते मीमो को कीमोथैरेपी के लिए टांडा मेडिकल कालेज व अस्पताल में रेगुलर आना पड़ता है। प्रत्येक 21 दिन बाद उनकी कीमोथैरेपी की जाती है और प्रत्येक सप्ताह के पांच दिन लगातार रेडिएशन थैरेपी की जाती है। अब ऐसे में मीमो चंबा से प्रतिदिन गाड़ी कर टांडा अस्पताल में नहीं पहुंच सकती है। लगभग एक बार आने के ही चार-पांच हजार रुपए खर्चा होता है। गरीब परिवार से ताल्लुक रखने वाली मीमो को टांडा अस्पताल में सीमेंट के ठंडे बरामदे में रहने को मजबूर होना पड़ रहा है। सप्ताह में पांच दिन रेडिएशन थैरेपी के कारण मीमो हर दिन चंबा नहीं जा सकती है।
सायं पांच बजे के बाद कीमोथैरेपी, उसके बाद कहां जाये मरीज
कीमोथैरेपी का समय भी सायं पांच बजे कार्ड पर मेंशन किया गया है, जिसके चलते कई बार रात को 8 से 10 बजे का समय भी हो जाता है, अब ऐसे में इतनी रात कहां जाए। टांडा अस्पताल में कीमो के बाद उसे घर लौटने के लिए कह देते हैं। मरीज मीमो व उनके पति ने अस्पताल को अपनी परिस्थिति कई बार बताई, परंतु उन्हें वार्ड में एक बेड तक नहीं दिया गया। मजबूर मीमो को कड़ाके की सर्दी में ठंडे सीमेंट के बरामदों में सोने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। कम से कम दूरदराज के जिलों से आने वाले मरीजों को तो बेड की व्यवस्था होनी चाहिए। नजदीक के मरीज तो जैसे-तैसे एडजस्ट कर लेते हैं। वर्ष 2023 बीत जाने के बाद भी टांडा अस्पताल में तैयार सराय को मरीजों व उनके तीमारदारों के लिए नहीं खोला जा सका हैै।
सराय तैयार होने के बावजूद आखिर मरीजों को सराय की सुविधा क्यों नहीं
हालांकि उपायुक्त जिला कांगड़ा भी दो बार सराय का दौरा व निरीक्षण कर चुके हैं। हिमाचल के दूरदराज के छह जिलों चंबा, मंडी, ऊना, कुल्लू, हमीरपुर व 15 लाख से अधिक आबादी वाले सबसे बड़े जिला कांगड़ा के मरीजों तथा उनके तीमारदारों को इसका खामियाजा झेलना पड़ रहा है। न जाने इस कैंसर के मरीज की तरह कितने अन्य मरीज कड़ाके की सर्दी में ठंडे बरामदों में ठिठुर रहे होंगे या ठिठुर चुके होंगे। एक साल से सराय तैयार होने के बावजूद मरीजों व तीमारदारों की सर्दियां ठंडे बरामदों में ही बीत रही हैं।