राधा अष्टमी के दूसरे दिन छतराड़ी में मां शिव शक्ति मेले का आरम्भ होता है सर्वप्रथम मणिमहेश की डल झील के जल से माँ की मूर्ति का स्नान कर श्रृंगार किया ज...
छतराड़ी के मां शिव शक्ति मंदिर में तीन दिवसीय मेले का आज समापन हो रहा है, एक स्तंभ पर घूमता शिव शक्ति मंदिर, प्रवेश द्वार पश्चिम की ओर, रोचक है इतिहास व मान्यता
राधा अष्टमी के दूसरे दिन छतराड़ी में मां शिव शक्ति मेले का आरम्भ होता है सर्वप्रथम मणिमहेश की डल झील के जल से माँ की मूर्ति का स्नान कर श्रृंगार किया जाता है। तत्पश्चात मूर्ति की पूजा की जाती है। मणिमहेश यात्रा के तुरंत बाद शुरू होने वाले इस मेले का विशेष महत्व है। इस मेले में मां के दर्शनों के लिए न केवल प्रदेश, अपितु देशभर से श्रद्धालु खिंचे चले आते हैं। इस मंदिर के निर्माण से संबंधित कई तरह की कथाएं जुड़ी हुई हैं। इस ऐतिहासिक मंदिर की अपनी एक अलग पहचान है।
मां शिव शक्ति मंदिर के ऐतिहासिक महत्व को समझते हुए सालभर यहां पर काफी संख्या में श्रद्धालु माता के दर्शनों को पहुंचते हैं। कहते हैं कि मां शिव शक्ति मंदिर में की हर मन्नत पूरी होती है। मां शिव शक्ति मेला जिलास्तरीय मेला हैं, जिसके लिए प्रशासन की ओर से व्यवस्थाएं की जाती हैं। मां शिवशक्ति मेले के लिए छतराड़ी घाटी के आसपास की छह पंचायतों के लोग मेले के दौरान खरीदारी के साथ-साथ पारंपरिक कार्यक्रमों में भी बढ़ चढ़ कर भाग लेते हैं। लोग मां शिव शक्ति मंदिर में पहुंचकर मां का आशीर्वाद प्राप्त करने के साथ इसके गौरवमयी इतिहास से भी रूबरू होते हैं।
मंदिर का निर्माण 780 ई. पूर्व हुआ था
चम्बा से मात्र 50 कि० मी० पर वसे छतराड़ी में स्थित मां शिव शक्ति मंदिर का निर्माण गोंगा मिस्त्री द्वारा करीब 780 ई. पूर्व में किया गया था। गोंगा नामक कारीगर जो सिर्फ एक हाथ का मालिक था जिसने मां शिव शक्ति मंदिर का निर्माण किया। इससे पूर्व वह उलांसा के राणा के लिए एक अनोखा महल बना चूका था राणा ने यह सोचकर की ऐसा महल कहीं और न बने इसलिए गोंगा का दाहिना हाथ काट दिया था। दुखी होकर जब वह चम्बा लौट रहा था तो उसे छतराड़ी में ही रात पड़ गयी। रात्रि माँ ने उसे स्वपन में दर्शन दिए और मंदिर बनाने लिए कहा कारीगर बोला कि मेरा तो एक ही हाथ है माता ने उसे शक्ति दी व उसने ऐसा मंदिर बनाया जो एक स्तम्ब पर घूमता था। अब प्रशन यह था कि मंदिर का द्वार कौन सी ओर हो। माता के आदेशानुसार मंदिर को घुमाया गया व जहाँ रुका वंही द्वार बनाया गया। माँ ने गोंगा से कहा तेरा हाथ लगा देती हूँ पर वह बोला मुझे मुक्ति चाहिए। छत का आखिरी स्लेट लगाते ही वह गिर गया व उसे मुक्ति प्राप्त हुई।