हिमाचल के कालेजों के युवा एक दशक से लोकतांत्रिक अधिकार से वंचित, प्रदेश को छात्र राजनीति से ही मिले दो-दो मुख्यमंत्री पंचायत चुनावों से लेकर केंद्र...
एचपीयू में छात्र संघ चुनावों से नहीं हटा ग्रहण, प्रदेश के युवाओं को एक दशक से उनके लोकतांत्रिक अधिकार से वंचित रखा गया
हिमाचल के कालेजों के युवा एक दशक से लोकतांत्रिक अधिकार से वंचित, प्रदेश को छात्र राजनीति से ही मिले दो-दो मुख्यमंत्री
पंचायत चुनावों से लेकर केंद्र तक की राजनीति में आज यूथ लीडरशिप की बात होती है। सरकारें और राजनीतिक पार्टियां इस बात को एडमिट करती हैं कि भारत युवाओं का देश है, लेकिन फिर भी प्रदेश के युवाओं को लंबे समय से उनके लोकतांत्रिक अधिकार से वंचित रखा जा रहा है। दरअसल, वर्ष 2013 में छात्र राजनीति पर जो फुलस्टॉप तत्कालीन सरकार ने लगाया था, उसकी ओर किसी का ध्यान ही नहीं गया। यह बात आज इसलिए निकली, क्योंकि हिमाचल के केंद्रीय विश्वविद्यालय में बुधवार को छात्र संघ चुनाव हुए। अब हैरानी की बात है कि हिमाचल में चल रही सेंट्रल यूनिवर्सिटी में तो छात्र संघ चुनाव हो रहे हैं, लेकिन प्रदेश की एचपीयू और इसके अधीन आने वाले सैकड़ों महाविद्यालयों को छात्र संघ चुनावों से वंचित रखा गया है। बता दें कि वर्ष 1995 में भी एक अप्रिय घटना के चलते छात्र संघ चुनाव बंद हुए थे, लेकिन 2000 में तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रो. प्रेम कुमार धूमल ने इन्हें बहाल कर दिया था।
परंतु वर्ष 2013 के बाद प्रदेश में प्रत्यक्ष रूप से छात्र संघ चुनाव नहीं हुए। अब जो सीएससी यूं कहें तो अप्रत्यक्ष रूप से चुनाव प्रणाली अपनाई जाती है, जिसमें कालेज के उन छात्रों को अध्यक्ष समेत अन्य ओहदे दिए जाते हैं, जो कि कालेज के टॉपर होते हैं। फिर चाहे उन्हें इसमें रुचि हो या न हो। अगर सियासी परिवेश पर नजर दौड़ाई जाए तो छात्र राजनीति से निकले नेताओं ने देश-प्रदेश की राजनीति में अपनी छाप छोड़ी है। वर्तमान मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविंद्र सिंह सुक्खू, पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर छात्र राजनीति से निकलकर आए हैं। विश्व की सबसे बड़ी पार्टी के अध्यक्ष जेपी नड्डा छात्र राजनीति से निकले हैं। बीजेपी नेता विपन परमार, रणधीर शर्मा, सतपाल सत्ती, गोविंद ठाकुर, प्रो. राम कुमार, विजय अग्निहोत्री समेत कई नेता छात्र राजनीति से निकलकर आए हैं। कांग्रेस की बात करें तो पूर्व प्रदेश अध्यक्ष कुलदीप राठौर, आनंद शर्मा, केवल सिंह पठानिया, संजय रतन, सुरेश कुमार, कुलदीप पठानिया, प्रेम कौशल जैसे कई नेता सरकारों में विधायक, मंत्री समेत संगठन के बड़े ओहदों पर रह चुके हैं।
टोनी ठाकुर, प्रदेश महासचिव एनएसयूआई
युवा समाज में बदलाव लेकर आते हैं। छात्र राजनीति से नए चेहरे राजनीति में आते हैं, नई सोच आती है। कुछ सालों से जिस तरह चुनाव बंद हुए हैं, तो आम परिवारों से निकले युवाओं को तो कभी लीडरशिप करने का मौका ही नहीं मिलेगा।
कनिका, ज्वाइंट सेक्रेटरी एसएफआई
प्रत्यक्ष रूप से कालेजों में चुनाव न करवाना छात्रों को उनके अधिकार से वंचित रखना है। छात्र राजनीति से निकले कई नेता आज बड़ी राजनीतिक पार्टियों में बड़े ओहदों पर विराजमान हैं। जिस तरीके से प्रदेश में पिछले कई वर्षों से चुनाव नहीं हुए हैं, उसे देखकर लगता है कि आने वाले समय में छात्र राजनीति का अस्तित्व की खत्म हो जाएगा।
अनिकेत सिंह, उपाध्यक्ष एबीवीपी हमीरपुर
छात्रों की समस्याएं केवल छात्र नेता ही करीब से समझ सकते हैं। छात्र संघ चुनावों में बकायदा वोटिंग होती थी, जिसमें वही छात्र नेता चुनकर आते थे, जो साफ छवि वाले हों और छात्रों की हर समस्या को समझते हों। इससे लीडरशिप पैदा होती थी। आज जिस तरीके से एससीए चुनाव करवाए जा रहे हैं, उनमें कालेज की ओर से किसी को भी ओहदा देकर खड़ा कर दिया जाता है।