हिमाचल में दोनों स्वास्थ्य योजनाओं पर 15 नवंबर तक खर्च हुए 430.56 करोड़ हिमकेयर और आयुष्मान भारत योजना में प्रदेश सरकार की देनदारियां लगातार बढ़ रह...
हिमकेयर और आयुष्मान दोनों स्वास्थ्य योजनाओं पर सरकार को 218 करोड़ की देनदारी
हिमाचल में दोनों स्वास्थ्य योजनाओं पर 15 नवंबर तक खर्च हुए 430.56 करोड़
हिमकेयर और आयुष्मान भारत योजना में प्रदेश सरकार की देनदारियां लगातार बढ़ रही है। इन दोनों योजनाओं को सिरे चढ़ाने में जुटी प्रदेश सरकार पर अभी 218 करोड़ 34 लाख रुपए का कर्ज है। इनमें से इसमें मुख्यमंत्री हिमकेयर में सबसे ज्यादा 190.32 करोड़ और आयुष्मान भारत 28.02 करोड़ है। दोनों योजनाओं के तहत स्वास्थ्य विभाग की 218.34 करोड़ की देनदारियां सूचीबद्ध अस्पतालों में लंबित है। गत तीन वर्षों में दिनांक 15 नवंबर, 2023 तक इन योजनाओं पर उपचार के लिए 811.25 करोड़ रुपए की धनराशि व्यय की गई है। दिसंबर 2022 से 15 नवंबर, 2023 तक 430.56 करोड़ रुपए की धनराशि विभिन्न बीमारियों के इलाज पर खर्च हुई है। इसमें आयुष्मान भारत में 79.12 करोड़, मुख्यमंत्री हिमकेयर में 351.44 करोड़ खर्च किए गए है।
प्रदेश में आयुष्मान भारत-प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के तहत 287 अस्पताल और मुख्यमंत्री हिमकेयर योजना के तहत 278 अस्पताल उपचार की सुविधा प्रदान करने के लिए पंजीकृत है। वित्तीय वर्ष 2023-24 में हिमकेयर और सहारा योजनाओं के लिए बजट का प्रावधान सहित खर्च की गई राशि में 149.00 करोड़ की राशि खर्च की गई है। योजना बजट का प्रावधान 111.86 करोड़ था। मुख्यमंत्री सहारा योजना में 62.22 करोड़ और मुख्यमंत्री हिमकेयर योजना 37.53 करोड़ खर्च किए है।
विधानसभा सत्र में गूंजा मुद्दा
धर्मशाला के तपोवन में चल रहे शीतकालीन सत्र में इस मामले की खूब गूंज सुनाई दी है। विधानसभा में सुलह विधानसभा क्षेत्र के विधायक विपिन परमार और श्रीनयना देवी जी के विधायक रणधीर शर्मा ने इन दोनों योजनाओं को लेकर सवाल उठाए है।
15 नवंबर तक बने 78365 नए हिमकेयर कार्ड
स्वास्थ्य मंत्री कर्नल धनीराम शांडिल ने बताया कि इन योजनाओं के तहत अस्पतालों ने नि:शुल्क उपचार करना और विभाग के क्लेमों की अदायगी एक निरंतर प्रक्रिया है। हिमकेयर योजना के तहत कार्ड बनाने की प्रक्रिया निरंतर जारी है। 15 नवंबर तक हिमकेयर योजना में 78,365 नए कार्ड बने और 30199 लाभार्थी सहारा योजना के तहत वित्तीय सहायता के लिए पंजीकृत है।
कैसे बचेंगे निजी अस्पताल
राज्य में ज्यादातर निजी अस्पताल स्वरोजगार का हिस्सा हैं और कई डाक्टर्स ने अपनी जिंदगी भर की जमापूंजी लगाकर शुरू किए हैं। सीमित संसाधनों में ये अस्पताल बेहतरीन सेवाएं दे रहे हैं पर हिमकेयर योजना उन्हें कंगाल करने पर उतारू है। छोटे-छोटे अस्पतालों को 30-30 लाख सरकार से लेने हैं पर उन्हें धैला नहीं मिल रहा। अस्पतालों को महंगा इलाज देने के बाद अब स्टाफ को जारी रखना मुश्किल हो रहा है।
सरकारी-निजी के रेट बराबर क्यो
सरकारी और निजी अस्पतालों में हिमकेयर के तहत इलाज करने के लिए सरकार ने एक जैसी दर रखी है। सरकारी अस्पताल के डाक्टर से लेकर हर तरह के खर्च जब सरकार उठाती है, तो उन्हें निजी जितने पैसे क्यों ? होना तो यह चाहिए कि सरकारी अस्पतालों की इन योजना के तहत दर कम की जाए और निजी की दर बढ़ाई जाए। निजी अस्पताल सैकड़ों लोगों को रोजगार भी दे रहे है।