मजदूर दिवस सिर्फ नाम का, आज तक नहीं मिल पाया हक

महंगाई में कम वेतन से टूट रहे सपने, सीटू के प्रदेश अध्यक्ष विजेंद्र मेहरा ने सरकार से न्यूनतम वेतन 26 हजार करने की मांग की बीबीएन में मजदूरों की हा...

मजदूर दिवस सिर्फ नाम का, आज तक नहीं मिल पाया हक

मजदूर दिवस सिर्फ नाम का, आज तक नहीं मिल पाया हक

महंगाई में कम वेतन से टूट रहे सपने, सीटू के प्रदेश अध्यक्ष विजेंद्र मेहरा ने सरकार से न्यूनतम वेतन 26 हजार करने की मांग की

बीबीएन में मजदूरों की हालत चिंता का विषय बनी हुई है। जहां एक तरफ महंगाई आसमान छू रही है, वहीं दूसरी तरफ मजदूर आज भी 12,400 रुपए मासिक वेतन में गुजारा करने को मजबूर हैं। औद्योगिक क्षेत्र में रहने वाले मजदूरों का कहना है कि एक कमरे का किराया ही 4500 रुपए है, ऐसे में आठ हजार में पूरे परिवार का खर्च चलाना नामुमकिन हो गया है। कई जगहों पर मजदूर एक-एक कमरे में दस-दस लोगों के साथ रहने को मजबूर हैं। असंगठित क्षेत्रों में स्थिति और भी खराब है-मजदूर झोपडिय़ों में दो-दो हजार किराया देकर रहते हैं, जहां न शौचालय है, न पानी की निकासी और न बच्चों की पढ़ाई का कोई इंतजाम। सीटू के प्रदेश अध्यक्ष विजेंद्र मेहरा ने सरकार से न्यूनतम वेतन 26 हजार करने की मांग की है। भारतीय मजदूर संघ के मंडल अध्यक्ष शिवम चंदेल ने मजदूरों की सामाजिक सुरक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली पर चिंता जताते हुए कहा कि बद्दी का ईएसआई अस्पताल भी नाम का रह गया है।

ठेके की छांव में पसीने का शोषण

बीबीएन के कई उद्योग अब स्थायी भर्ती की जगह ठेकेदारी प्रथा को बढ़ावा दे रहे हैं। ठेके के तहत काम करने वाले मजदूरों को न वेतन समय पर मिलता है, न ही ईएसआई और पीएफ जैसी मूलभूत सुविधाएं। महिला कामगारों को तो कई जगह न्यूनतम सुविधा तक नसीब नहीं, असंगठित क्षेत्र के मजदूर-जैसे निर्माण, कबाड़ उठाने या पत्थर तोडऩे वाले-इन सुविधाओं का नाम भी केवल सुनकर ही रह जाते हैं।

झुग्गियों की आगोश में जिंदगी

बीबीएन में अढ़ाई हजार उद्योग हैं, लेकिन गिनती के ही उद्योगों ने मजदूरों के लिए रिहायश का इंतजाम किया है। बाकी लाखों मजदूर 20,000 से अधिक झुग्गियों में रह रहे हैं—ज्यादातर निजी भूमि पर अवैध रूप से बनीं, जहां न सफाई है, न पीने का पानी, न बिजली का भरोसा। कई मजदूर दस-दस लोगों के साथ एक कमरे में रहने को मजबूर हैं।