राजेंद्र राणा ने कहा प्रदेश के स्वाभिमान की इस लड़ाई में, मुझे हिमाचल वासियों के आशीर्वाद और सहयोग की जरूरत कांग्रेस से बगावत कर विधानस...
सत्ता की साजिश और षड्यंत्र के खिलाफ मेरी बगावत आखिरी मुकाम पर
राजेंद्र राणा ने कहा प्रदेश के स्वाभिमान की इस लड़ाई में, मुझे हिमाचल वासियों के आशीर्वाद और सहयोग की जरूरत
कांग्रेस से बगावत कर विधानसभा की सदस्यता गंवाने वाले राजेंद्र राणा ने कहा है कि ‘मौजूदा सत्ता की साजिश और षड्यंत्र के खिलाफ मेरी बगावत आखिरी मुकाम पर है और बहुत जल्द आपको इसके परिणाम भी दिख जाएंगे। विश्वास कीजिए वो परिणाम हर तरह से हिमाचल और हिमाचलियत के लिए सुखद और मील का पत्थर साबित होंगे। सत्य और न्याय की मेरी लड़ाई में आप शुरू से मेरा साथ देते रहे हैं और उम्मीद करता हूं कि सच और न्याय की इस लड़ाई में, प्रदेश के स्वाभिमान की इस लड़ाई में, मुझे आपका आशीर्वाद और सहयोग मिलता रहेगा। ये बात उन्होंने अभी कुछ देर पहले अपने सोशल मीडिया हैंडल पर लिखी है।
सारी हकीकत आपके सामने है
राणा ने लिखा- ‘हिमाचल के मेरे प्यारे साथियों, पिछले कुछ दिनों से अपनी देवभूमि में जो सियासी गतिविधियां चल रही है, उससे आप अच्छी तरह वाकिफ हो और मुझे उसके बारे में मुझे अलग के कुछ बताने की जरूरत नहीं है। सारी हकीकत आपके सामने है। जो आपके सामने नहीं हैं और जिसे साजिश के तहत पर्दे के पीछे छिपाया जा रहा है, उसी से आपको रू-ब-रू कराने के लिए मैं ये पोस्ट लिख रहा हूं क्योंकि मेरी प्रतिबद्धता, मेरा लगाव, मेरी निष्ठा, मेरा समर्पण, मेरा विश्वास और मेरी जिम्मेदारी आपसे है, सत्ता के शिखर पर बैठे किसी बौने शहंशाह से नहीं हैं।
आरजू थी इंसाफ की, हिस्से बस जिल्लत आयी
आपसे किए वादों को पूरा करने के लिए मैं सुजानपुर से शिमला और शिमला से दिल्ली तक की दौड़ लगाता रहा। हाथ जोड़कर गुहार लगाता रहा है कि हिमाचल और हिमाचलियत को बदनाम मत करो। जो वादा किया है, उसे पूरा करो। लोगों के भरोसे, देवभूमि की पवित्रता और पावनता को कलंकित मत करो लेकिन ना तो शिमला के शहंशाह के दरबार में मेरी सुनवाई हुई, ना ही हस्तिनापुर के दरकते सिंहासन पर सत्तारूढ़ सत्तानीशों ने मेरी बात पर गौर फरमाया। आरजू थी इंसाफ की, हिस्से बस जिल्लत आयी आखिर में मेरे पास बस दो विकल्प बचे थे। पहला-मैं सीएम सुक्खू के किचन कैबिनेट में शामिल होकर सत्ता सुख का आनंद उठाता, दिल्ली के कांग्रेस दरबारियों में अपना नाम लिखाकर सुख चैन की बंसी बजाता, और दूसरा-वही विकल्प जिस पर मैं इस वक्त चल रहा हूं।
प्राण जाए पर वचन ना जाए
हिमाचल और हिमाचलियत को बचाने के लिए-प्राण जाए पर वचन ना जाए की अपनी सनातन संस्कृति को अक्षुण्ण रखने के लिए बगावत करना। मैंने दूसरे विकल्प को चुना क्योंकि इसी देवभूमि की पवित्र-पावन भूमि ने मुझे बचपन से सीखाया है कि अगर सच के लिए बगावत करना जरूरी है तो फिर बगावत से कभी हिचकना मत। देवभूमि की वो सीख, देवभूमि के वो संस्कार और देवभूमि की उस सनातन संस्कृति को मैने सिर माथे पर सजाया और बगावत का बिगुल फूंक दिया। जय हिंद! जय हिमाचल !’