चंबा अस्पताल की सरकारी प्रयोगशाला में मरीजों के थायराइड के टेस्ट बंद हो गए हैं हिमकेयर कार्ड धारक सहित अन्य मरीज निजी लैब में 500 से 800 रुपये देकर...
चम्बा के पंडित जवाहर लाल नेहरू मेडिकल कॉलेज में मुफ्त में होने वाले थायराइड टेस्ट के देने पड़ रहे 800 रुपये
चंबा अस्पताल की सरकारी प्रयोगशाला में मरीजों के थायराइड के टेस्ट बंद हो गए हैं
हिमकेयर कार्ड धारक सहित अन्य मरीज निजी लैब में 500 से 800 रुपये देकर थायराइड के टेस्ट करवा रहे हैं। तीन दिन पहले सरकारी प्रयोगशाला में थायराइड के टेस्ट की किट खत्म हो चुकी हैं। प्रबंधन अभी तक ये किटें प्रयोगशाला में उपलब्ध नहीं करवा पाया है। क्रस्ना लैब में भले ही मरीजों का यह टेस्ट सस्ता किया जा रहा है, लेकिन समय पर मरीजों को इसकी रिपोर्ट नहीं मिल रही है। मरीज टेस्ट के लिए निजी लैब जा रहे हैं। सभी लैब के अपने-अपने रेट तय किए हैं। हिमकेयर सहित आईआरडीपी से संबंधित मरीजों का सरकारी प्रयोगशाला में थायराइड का टेस्ट मुफ्त किया जाता है। सामान्य मरीजों से इस टेस्ट के लिए 200 रुपये फीस ली जाती है। निजी लैब में सामान्य के साथ हिमकेयर और आईआरडीपी से संबंधित मरीजों को भी टेस्ट के लिए पैसे देने पड़ रहे हैं।
रोजाना होता है 20, 25 मरीजों का थायराइड टेस्ट
तीमारदारों में हंसराज, गोविंद, जितेंद्र कुमार, चमन सिंह, रवि कुमार, टेक चंद, संजय शर्मा और महिंद्र सिंह ने बताया कि मेडिकल कॉलेज जिले का सबसे बड़ा स्वास्थ्य संस्थान हैं। यहां मरीजों के टेस्ट बंद नहीं होने चाहिए। जिले से रोजाना सैकडों मरीज टेस्ट करवाने के लिए यहां पहुंचते हैं। मेडिकल कॉलेज प्रशासन को प्रयोगशाला में खत्म होने वाला जरूरी सामान समय पर उपलब्ध करवाने की व्यवस्था करनी चाहिए। चिकित्सा अधीक्षक डॉक्टर देवेंद्र कुमार ने बताया कि प्रयोगशाला में खत्म किटें उपलब्ध करवाने के लिए ऑर्डर दिया जा चुका है। जल्द ही किटें उपलब्ध करवा दी जाएंगी। मेडिकल कॉलेज की ओपीडी में रोजाना 20 से 25 मरीजों को थायराइड का टेस्ट करवाने का परामर्श दिया जाता है। ये मरीज टेस्ट के लिए सरकारी प्रयोगशाला में जाते हैं। यहां मरीजों का टेस्ट मुफ्त किया जाता है। अब ये मरीज निजी लैब में टेस्ट करवाने को मजबूर हैं।
प्रत्येक माह होता है 3500 किटों का इस्तेमाल, इसमें प्रबंधन की लापरवाही भी है एक कारण
मेडिकल कॉलेज की सरकारी प्रयोगशाला में हर माह थायराइड टेस्ट करने के लिए 3500 किटें इस्तेमाल की जाती हैं। प्रयोगशाला में किट की मांग दो महीने पहले प्रबंधन को दे दी जाती है। ऐसे में समय पर किट न पहुंचने को लेकर कहीं न कहीं प्रबंधन की लापरवाही भी सामने आ रही है।