दिव्या का दौड़ते-दौड़ते बचपन का धाविका बनने का सपना कब पूरा हो गया 55 की उम्र में लोग जिंदगी की भागदौड़ से थककर आराम करना चाहते हैं लेकिन दिव्या वि...
कांगड़ा की दिव्या को जिंदगी की भागदौड़ ने बनाया मैराथन रनर, 55 की उम्र में दिव्या के नाम हैं 50 पदक
दिव्या का दौड़ते-दौड़ते बचपन का धाविका बनने का सपना कब पूरा हो गया
55 की उम्र में लोग जिंदगी की भागदौड़ से थककर आराम करना चाहते हैं लेकिन दिव्या विशिष्ठ (55) मेडल बटोरने में जुटी हैं। 45 की उम्र में दौड़ना शुरू कर दिव्या देश-प्रदेश और विदेश के अलग-अलग हिस्सों में होने वाली मैराथन में अब तक 50 मेडल अपने नाम कर चुकी हैं। अभी भी उनका जोश कम नहीं हुआ है। हौसले के बल पर मुश्किलों को मात देते हुए दिव्या अंतरराष्ट्रीय फलक पर भी भारत का परचम लहराने के लिए भी निरंतर प्रयास में जुटी हैं। खास बात यह है कि दिव्या घर और दफ्तर के काम को भी बखूबी निभा रही हैं। हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के धर्मशाला के निकटवर्ती घरोह लांझणी गांव की दिव्या किसी प्रेरणा से कम नहीं हैं। दिव्या बताती हैं कि नौकरी और जिंदगी की भागदौड़ के बीच 13 साल पहले बंगलूरू में जिम ज्वाइन किया था। उस दौरान ट्रेनर ने कहा और दौड़ने का विचार आया। दौड़ने का लक्ष्य फिटनेस नहीं था बल्कि एक्टिव रहना था। लेकिन दौड़ते-दौड़ते बचपन का धाविका बनने का सपना कब पूरा हो गया, इसका पता ही नहीं चला।
मंगलवार और वीरवार को 15-15 और शनिवार को 20 से 25 किमी की दौड़ती है दिव्या
पिछले 10 साल में 91 से अधिक नामी लंबी दूरी की मैराथन प्रतियोगिताओं में भाग ले चुकी हैं। हाल ही में दिव्या ने कांगड़ा हेरिटेज अल्ट्रा रन में 75 किलोमीटर की दौड़ 11 घंटे 40 मिनट में पूरी कर महिला वर्ग में पहला स्थान हासिल किया है। करीब नौ साल अमेरिका, कनाडा और नौ साल बंगलूरू में नौकरी कर चुकीं दिव्या अब छह साल से लांझणी में रह रही हैं। यहीं से एमएनसी कंपनी में वर्क फ्राम होम कर रही हैं। दिव्या ने बताया कि दौड़ने के लिए सप्ताह में तीन दिन तय किए हैं। मंगलवार और वीरवार को 15-15 और शनिवार को 20 से 25 किमी की दौड़ होती है। अगर कोई प्रतियोगिता होती है तो एक दो दिन पहले 100 किमी भी दौड़ लेती हैं।
अब बिना दौड़ लगाए नहीं रहा जाता
दिव्या ने बताया कि दौड़ से जीवन में खुशी मिली है और एक्टिव भी हुई हूं। अब तो बिना दौड़ लगाए रहा नहीं जाता है। स्वस्थ और एक्टिव रहने के लिए अभ्यास बहुत जरूरी है। उन्होंने कहा कि कभी भी युवाओं को अति विश्वास नहीं करना चाहिए। कुछ करना है तो उसे करना ही चाहिए। इसके लिए कभी समय के बारे में नहीं सोचना चाहिए। लक्ष्य है तो उसे पूरा करना चाहिए। चाहे वह दस किमी का हो या फिर 50 किमी का।
देश-विदेश में दिव्या की मैराथन
2014 में बंगलूरू में 10 किमी दौड़ में पहली बार महिला वर्ग में पहला स्थान प्राप्त किया। 42 किमी की 20 फुल मैराथन में 10 में पहला स्थान हासिल किया। 2018 में 42 किमी माउंट एवरेस्ट मैराथन में भारतीय वर्ग में प्रथम, 2016 और 2022 में 72 किलोमीटर को खडदुंगला चैलेंज में सीनियर वर्ग में विजेता, 2019 में 161 किमी (100 मील) वाली अति दुर्गम ‘गढ़वाल-नडुरंस रेस’ की इकलौती महिला विजेता बनी थीं। इस मैराथन में पांच प्रतिभागियों के बीच केवल दिव्या अकेली महिला प्रतिभागी थीं, जिसने 31 घंटे व आठ मिनट के अंतराल में नौ डिग्री तापमान में दो पुरुष धावकों के बाद द्वितीय रनरअप बनकर देवभूमि को गौरवान्वित किया था। 2023 में उत्तराखंड में 80 किमी की मैराथन में महिलाओं में दिव्या प्रथम स्थान पर रहीं। इसके अलावा दक्षिण अफ्रीका में 90 किमी कॉमरेड अल्ट्रा रन सहित यूएसए और कैलिफोर्निया में ट्रायल रन में भाग लिया है।