कम बर्फबारी व वर्षा से सिकुड़ सकते हैं ग्लेशियर, पेयजल संकट भी गहराएगा

हिमाचल के हालात चिंताजनक डेढ़ माह से बर्फबारी और तीन माह से बारिश न होने से सूखे जैसे हालात  हिमाचल प्रदेश में पिछले डेढ़ माह से बर्फबारी और त...

कम बर्फबारी व वर्षा से सिकुड़ सकते हैं ग्लेशियर, पेयजल संकट भी गहराएगा

कम बर्फबारी व वर्षा से सिकुड़ सकते हैं ग्लेशियर, पेयजल संकट भी गहराएगा

हिमाचल के हालात चिंताजनक डेढ़ माह से बर्फबारी और तीन माह से बारिश न होने से सूखे जैसे हालात 

हिमाचल प्रदेश में पिछले डेढ़ माह से बर्फबारी और तीन माह से बारिश न होने से सूखे जैसे हालात हो गए हैं। जनवरी में भी मौसम शुष्क रहने के आसार हैं। इसका असर हिमालयन रेंज के हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के करीब 9,500 छोटे-बड़े ग्लेशियरों पर भी असर पड़ेगा। ग्लोबल वार्मिंग से पहले से ही सिकुड़ रहे ग्लेशियरों के लिए नवंबर से जनवरी तक होने वाली बर्फबारी संजीवनी होती है। ग्लेशियर पर शोध कर रहे विशेषज्ञों का मानना है कि इस दौर की बर्फबारी ज्यादा टिकाऊ मानी जाती है। मौसम ने साथ न दिया तो नदी-नालों का जलस्तर घटने से पेयजल स्रोत सूखने का संकट भी गहरा सकता है।

मकर संक्रांति के बाद सूर्य की किरणें सीधी पड़ती हैं इसलिए नहीं टिकती फरवरी-मार्च की बर्फ

दिसंबर और जनवरी की बर्फबारी ग्लेशियरों को मजबूती देती है। फरवरी और मार्च में होने वाली बर्फ ज्यादा समय तक नहीं टिक पाती है। वरिष्ठ वैज्ञानिक डाॅ. जेसी कुनियाल के अनुसार मकर संक्रांति के बाद सूर्य की किरणें सीधी पड़ती हैं और तापमान बढ़ने से बर्फ जल्दी पिघल पाती है। इसके अलावा इस दौरान पहाड़ों में पर्यटन गतिविधियां भी बढ़ जाती हैं।

बड़ा शिगरी, छोटा शिगरी, कुलटी, शिपिंग जैसे सबसे ज्यादा संकट छोटे ग्लेशियरों पर 

भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के ताजा सर्वे के मुताबिक हिमालयन रेंज में कुल 9,500 छोटे-बड़े ग्लेशियर हैं। इनमें हिमाचल प्रदेश के चिनाब बेसिन में 989, रावी बेसिन में 94, सतलुज बेसिन में 258 और ब्यास बेसिन में 144 ग्लेशियर हैं। इनमें अधिकतर छोटे ग्लेशियर हैं और इनकी औसतन लंबाई एक से दो वर्ग किलोमीटर है। बर्फबारी न होने का सबसे ज्यादा खतरा इन्हीं ग्लेशियरों पर है। इसके अलावा बड़ा शिगरी, छोटा शिगरी, कुलटी, शिपिंग, डिंग कर्मो, तपन, ग्याफांग, मणिमहेश, शिली, शमुंद्री, बोलूनाग, तारागिरि, चंद्रा, भागा, कुगती, लैंगर, दोक्षा, नीलकंठ, मिलंग, मुकिला, मियाड़, लेडी ऑफ केलांग, गैंगस्टैंग, सोनापानी, गोरा, तकडुंग, मंथोरा, करपट, उलथांपू, थारोंग, शाह, पटसेऊ, हामटा, पंचनाला सहित सैकड़ों ग्लेशियर सिकुड़ रहे हैं।

हिम पर्वतों का सौंदर्य पड़ा फीका, दिखने लगे काले

जलवायु परिवर्तन का असर हिम पर्वतों पर पड़ने लगा है। कभी साल भर बर्फ से लकदक रहने वाले हिम पर्वतों का सौंदर्य इस बार फीका पड़ गया है। बर्फबारी न होने से जनवरी में ही ये पर्वत काले पड़ गए हैं। दस साल पहले तक हिमालयी क्षेत्र के जो गांव नवंबर से मार्च तक बर्फ से लकदक रहते थे, आज उन गांवों में जनवरी में भी बारिश नहीं है। सर्दियों में बारिश और बर्फबारी नहीं होने का असर क्षेत्र के जनजीवन पर भी पड़ रहा है।